राब्स पीयर का शासन काल म्यांमार में दिखलाई पड़ रहा है।

वर्तमान में म्यांमार कि स्थिति फ्रांस के जैकोबिन काल से मिलती है। जिस प्रकार राब्स पीयर फ्रांस में अपना कहर बरसा रहा था। उसी तर्ज में म्यांमार की सेना भी दिखाई दे रही है। म्यांमार में मौत का कहर जारी है।

हाल ही में म्यांमार के हुक्मरानों(सेना) ने एक फरमान जारी किया कि नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के पूर्व सांसद को फो जेया और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ता जिमी के लिए मौत की सजा सुनाई गई है। जोकि फ्रांस के गिलोटिन युग अर्थात राब्स पीयर के काल में दिखलाई पड़ता है।(इस युग में बहुत लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाता था )

वर्तमान समय में म्यांमार में गरीबी, भूखमरी, पलायन,रोजगार की कमी आदि समस्या से वह दो चार हो रहा है। पिछले साल फरवरी में हुए तख्तापलट से तकरीबन ढाई करोड़ लोग गरीबी के दंगल में फस चुके है। तख्तापलट के बाद से कम से कम 4,25,000 लोग नए सिरे से विस्थापित हो चुके है।

यूएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 1.44 करोड़ लोगो को मानवीय मदद की जरुरत है। 40,000 लोग पलायन करके थाईलैंड और भारत जैसे देशों में शरण ले रहे है। जिससे बेहतर जीवन की प्राप्ति हो सके। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2 जून तक फौज के द्वारा 1883 लोगो की जान ले चुकी है और 13500 से ज्यादा लोगो को गिरफ्तार किया जा चुका है।

रोजगार कि भारी कमी के चलते लोगो को अपने जीवोकोपार्जन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। हाल ही में आई आईएलओ की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि 16 लाख लोग अपनी नौकरी गवा चुके है। फरवरी 2022 से अप्रैल के बीच पेट्रोल के दामों में 27 फीसदी की उछाल दर्ज कि गई। जोकि आने वाले समय में डीजल के भाव का ढाई गुना हो जायेगा। म्यांमार की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। खाने पीने के सामानों में रिकार्ड वृद्धि देखी गई है। जिसके चलते लोगो के ऊपर दोहरी मार पड़ रही है।

मानवीय संघर्षों के बीच कुदरत भी अपना गुस्सा दिखा रही है। अप्रैल 2022 से कई बार देश के तटीय इलाको में आंधी-तूफान और मूसलाधार बरसात की मार पड़ चुकी है। कायिन, काचिन, रखाइन और शान जैसे राज्यों के निचले इलाक़ों में बारिश से मकानों और पनाहगाहों को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है।पहले से ही तमाम मुसीबतें झेल रहे म्यांमार के लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।

ऐतिहासिक घटनाक्रम

नवंबर 2020 में हुए संसदीय चुनाव में आंग सान सू की के राजनीतिक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को अधिकांश सीटें हासिल हुईं। वर्ष 2008 में सेना द्वारा तैयार किये गए संविधान के मुताबिक, म्याँमार की संसद में सेना के पास कुल सीटों का 25 प्रतिशत हिस्सा है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।

वर्ष 2021 की शुरुआत में जब नव निर्वाचित संसद का पहला सत्र आयोजित किया जाना था, तभी सेना द्वारा संसदीय चुनावों में भारी धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष की अवधि के लिये आपातकाल लागू कर दिया गया।

इस विषय पर भारत सरकार ने बड़ी कड़ाई से इसकी आलोचना की थी। भारत सरकार का कहना था कि लोकतांत्रिक तरीके से ही किसी देश की शासन प्रणाली चलनी चाहिए। जिससे एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। सेना की शासन व्यवस्था में तानाशाही जैसी समस्याएं व्याप्त होती है।

भारत और म्यांमार का संबध

भारत और म्यांमार एक लंबी (1643 किमी) भौगोलिक भू-सीमा और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा साझा करते हैं। म्यांमार पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों मिजोरम, मणिपुर, नागालैण्ड और अरूणाचल प्रदेश के साथ सीमा साझा करता है। इसलिए म्यांमार को दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार कहा जाता है। इस कारण भारत की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति की सफलता भी काफी हद तक म्यांमार के साथ अपने संबंधों पर निर्भर करती है क्योंकि म्यांमार उसका पुराना और विश्वसनीय मित्र रहा है।

यदि द्विपक्षीय व्यापार की बात करें तो भारत-म्यांमार द्विपक्षीय व्यापार 1980-81 में 12.4 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2016-17 में 2.18 बिलियन डॉलर का हो गया। भारत ने म्यांमार को शुल्क-मुफ़्त वरीयता वाले देशों की श्रेणी में रखा है। यही नहीं भारतीय कंपनियाँ जैसे- एस्सार, गेल और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने म्यांमार के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है।

इस लिए भारत सरकार अपने हित को ध्यान में रखते हुए सैन्य शासन प्रणाली की आलोचना कर रही है और लोकतांत्रिक सरकार की मांग कर रही हैं।

2022 की पहली तिमाही के अंत तक 26 लाख लोगों को मानवतावादी मदद पहुंचाई जा चुकी है। हालांकि अभी भी 59 फ़ीसदी जरूरतमंद आबादी तक सहायता पहुंचाना बाकी है। अभी 74 करोड़ डॉलर रुपए की दरकार है। जिससे म्यांमार को इस समस्या से उबारा जा सके

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