गलत बयानों से फैली अस्थिरता

भारत के एक पार्टी के प्रवक्ता ने टीवी चैनल में पैगम्बर साहब के लिए गलत टिप्पणी से पूरे देश का सौहार्द बिगाड़ कर रख दिया है। जम्मू से लेकर द्रविड़ के राज्यों तक हिंसक घटनाओं सिलसिला शुरू है।विश्व के मुस्लिम देशों ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त किया है।

इस्लामिक सहयोग संगठन’ द्वारा भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी किए जाने की यह पहली घटना नहीं है।

इस्लामिक सहयोग संगठन ने भी इस कृत्य की भर्त्सना की है। OIC, वर्ष 1969 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। वर्तमान में इसमें 57 सदस्य देश सम्मिलित हैं।यह संयुक्त राष्ट्र संघ के पश्चात दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।इस संगठन का कहना है कि यह “मुस्लिम विश्व की सामूहिक आवाज” है।इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना और साथ ही दुनिया के मुस्लिम समुदायों के हितों की रक्षा और संरक्षण हेतु कार्य करना है।

संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय संघ में OIC के स्थायी प्रतिनिधिमंडल हैं।

इसका स्थायी सचिवालय सऊदी अरब के जेद्दा में स्थित है।इस्लामिक सहयोग संगठन में तुर्की मुस्लिम देशों का अपने आप को नेता मानता है। जिसमे पाकिस्तान इसके सहारे भारत में अल्पसंख्यकों के साथ थोड़ा सा भी हुई ज्यादती के लिए वैश्विक स्तर पर इस मुद्दे को उठाता है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ प्रताड़ना की जाती है उस पर बात नहीं कर रहे हैं। वहीं पाकिस्तान को चेताया भी है कि पहले अपने घर की कमियों को दूर करें तब दूसरे के बारे में बात करें।

जहां देखा जाए तो चीन शिंजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के साथ काफी प्रताड़ित करता है। काफी रिपोर्टों में इसे सही माना गया है कि चीन के द्वारा वहा पर डिटेंशन सेंटर बनाया गया है कोई इस पर बात नहीं करता है।

नई दिल्ली के लिए समस्या बन सकती है। बाब एल मंडेब का द्वार ?

नई दिल्ली इस बात से पूर्णता अवगत है, कि ऊर्जा संसाधनों के लिए अभी भी 80 फ़ीसदी से भी अधिक हम पश्चिम एशिया क्षेत्र पर निर्भर है, इन्हीं विषयों को देखते हुए पश्चिम एशिया में शांति की अहम भूमिका होती है। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मुख्य द्वार है। जो नई दिल्ली के लिए व्यपार उन्नति में मदद कर सकता है । तथा समुद्री डकैती मैं भी नियंत्रण लगाया जा सकता हैं ।

अरब से नई दिल्ली के संबंध आज के संबंध नहीं बल्कि सिंधु सभ्यता के समय से हमारे व्यापारिक संबंध स्थापित थे ।अरब संस्कृति पूर्व में सिंधु नदी और चीन की सीमा से आरंभ होकर पश्चिम में जिब्राल्टर और पिरेनीज की पर्वतमाला तक विस्तृत थी। नई दिल्ली वर्तमान समय में ऊर्जा और सुरक्षा तथा भारतीय मूल के लोगों के लिए रोजगार और सामरिक महत्व के चलते इसकी ओर निहार रही है। पश्चिम एशिया में आबू धाबी के क्षेत्र में सबसे अधिक भारतीय डायस्पोरा रहता है। लगभग 35 लाख भारतीय वहां पर किसी प्रकार के रोजगार के लिए रह रहे हैं ,जो वहां की जनसंख्या का 27 फ़ीसदी प्रतिनिधित्व करती है। उनके द्वारा लगभग 16 बिलियन डॉलर वित्त प्रेषण के रूप में भारत में आता है।

, वहीं भारत का वह तीसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है, 2020 से 2021 में भारत में अबूधाबी की तरफ से 81.72अरब डॉलर एफडीआई आया। जो कि वैश्विक आंकड़ों के आधार पर आठवां सबसे बड़ा निवेशक देश है ,वही चौथा सर्वाधिक तेल आपूर्तिकर्ता, नई दिल्ली अपनी जरूरत का 8 फ़ीसदी तेल अबू धाबी के ऊपर निर्भर है । वही यह दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय सौर संगठन इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी संगठनों में भी साथ हैं।

इसी तरह अन्य खाड़ी देशों से भी भारत की उम्मीदें है। क्योंकि यहां पर भारतीय मूल के काफी लोग रहते हैं जिससे भारत में इनके द्वारा वित्त प्रेषण अधिक किया जाता है। ऊर्जा संसाधनों के लिए आज भी हम पश्चिम एशिया के उपर निर्भर है।

भारत को इस्लामिक सहयोग संगठन और पश्चिम के देशों के साथ अपने साझेदारी को और मजबूत करना है। जिसको लेकर विदेश मंत्रालय ने सभी देशों के साथ बात करने का प्रयास किया है। जिससे इस समस्या से उबरा जा सके। भारत की नीति वसुधैव कुटुंबकम की रही है। ऐसे में इन देशों के द्वारा भारत पर उठाए जाने सवाल निरर्थक साबित होते हैं।

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