हाल में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का सहारा लेते हुए समाज में फैली कुरीतियों समाप्त करने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला दिया। उसने कहा कि सेक्स वर्क भी एक प्रोफेशन है। सुप्रीम कोर्ट ने यह बताया कि बाकी वर्कर के आधार पर सेक्स वर्करों को भी इक्वल प्रोटक्शन है,लॉ का और हक है।
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी ही सूक्ष्म बात को ध्यान में रखते हुए कहा जो ब्रोथल अर्थात (कोठा )चलाते हैं। वह निषेध है लेकिन इंडिविजुअल रूप से वैध है और सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ी बात कही कि जो बच्चे सेक्स वर्करों के साथ हैं मतलब उनकी मां है, तो उनको अलग नहीं किया जा सकता। ब्रोथल में जो बच्चे मिलते हैं। उनका डीएनए टेस्ट करवाया जा सकता है, कि वह बच्चे उनके या किसी और के हैं। यदि बच्चे सेक्स वर्करों के है तो उन्हें उनसे अलग नहीं किया जाएगा। यदि साबित नही होता तो ट्रैफकिग का केस दर्ज किया जायगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि जो अस्पतालों में उन्हें समस्या उठानी पड़ती है। वह ना करना पड़े। इसके लिए सरकार कुछ नए नियम बनाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया के रोल का भी जिक्र किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया को थोड़ा संयम बरतना चाहिए उनके आईडेंटिटी को नहीं डिस्क्लोज करना चाहिए पुलिस को भी उनके साथ डिग्निटी के साथ ट्रीट करना चाहिए।
वैसे हमारे देश में 1956 का एक्ट है।( इम्मोरल ट्रेफिकिंग प्रीवेंशन एक्ट) उसमें एक बात कही गई है कि जो आप सेक्स से जो पैसा कमा रहे हैं। वह भी की एक क्रिमिनल है। लेकिन 2012 में सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आया था। बुध देव बनाम पश्चिम बंगाल के केस में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था। सेक्स वर्करों की भी डिग्निटी है। एक पैनल भी गठित किया गया था। इसके सुधार के लिए वही 2012-13 में एक जस्टिस वर्मा कमेटी का भी निर्माण किया गया था। लेकिन सारी बातें बेगानी ही लगती है। जमीनी हकीकत उनकी साफ नहीं दिखलाई पड़ती है।
वही देखा जाए तो, जो समाज के हर तबके के लोगों के पास जो मौलिक अधिकार है। वह शायद इनके पास नही है। लेबर राइट्स, हेल्थ राइट,गाली गलौज,मानसिक प्रताड़ना जैसी समस्याओ का सामना भी करना पड़ता है। वही परिवार से समाज से घर से दोस्तों से अनेक प्रकार की प्रताड़ना भी उनको उठानी पड़ती है।अपने आप को जीने के लिए जो कार्य उनके द्वारा किए जाते है। वह गलत नही है। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने इसी वजह से कहा है, कि यह गलत कार्य नहीं है। यह प्रोफेशन भी गलत नहीं है यह एक काम है।जो कि अब मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए और कुछ कदम जरूर उठाएं जाने चाहिये।
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