जिस प्रकार (नेपोलियन क्रांति का पुत्र भी था और क्रांति का हंता भी था) उसी प्रकार राजपक्षे परिवार श्रीलंका में दिखलाई पड़ता है।
ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है, कि किसी देश का तंत्र पूरी तरह से फेल हो जाए और विरोध की अवस्था चरम स्तर पर पहुंच जाएं और सरकार के मंत्रियों को जनता से बचने के लिए इधर-उधर भागना पड़े मगर ऐसा हुआ है और कही नहीं वह अपने ही पड़ोसी देश श्रीलंका में देखने को मिला।
कहां जाता है कि वंशवाद एक ऐसा दीमक की तरह होता है जो एक दिन पूरे पेड़ को खोखला बना देता है, और वही उसके लिए सबसे घातक हथियार साबित होता है। जो कि राजपक्षे परिवार में दिखलाई पड़ता है।
नेपोलियन ने अपने भाई को स्पेन का राजा बनाया था। वहीं अन्य रिश्तेदारों को छोटे-छोटे पद देने का काम किया था । उसी तरह श्रीलंका की सत्ता में बासिल (वित्त मंत्री) नामल और चामल जैसे दीमक सत्ता में काबिज थे। पिछले सत्राह साल के कार्यकाल में श्रीलंका में तेरह साल राजपक्षे परिवार की सत्ता काबिज थी। गोटाबाया और महिंद्रा राजपक्षे की अकुशल नीतियों के कारण श्रीलंका बदहाली की कगार में खड़ा आज श्रीलंका पास फरवरी तक उसके पास केवल 2.31 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार शेष रह गया था, जबकि उस पर 13 अरब डॉलर का कर्जा था।
राजपक्षे ने अपनी छवि ऐसे नायक की बनाई थी, जो लोकतांत्रिक मानकों की परवाह नहीं करता है। उन्होंने बहुसंख्यकवादी राजनीति की और 70 प्रतिशत सिंहल बौद्धों के समर्थन से तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की। विपक्षी स्वरों के प्रति उनका प्रतिकूल रुख भी झलका, मीडिया पर अंकुश लगाया गया।
लेकिन समय का चक्र ऐसा बदला कि जो राज्य पक्षे परिवार श्रीलंका में बहुत मजबूत स्थिति में था आज वह सैन्य ठिकानों में अपना गुजर-बसर कर रहा है। और लोग हवाई अड्डों को घेर कर रखे हुए हैं कि कहीं राज्य पक्षे परिवार देश छोड़कर चले ना जाए।
भारत सरकार ने इस संकट की घड़ी से उबरने के लिए श्रीलंका को काफी आर्थिक मदद दी है। रसद, मानवीय सहायता एक पड़ोसी देश होने के नाते भारत सरकार ने अपने कर्तव्यों का निर्वाहन किया है, कि पड़ोस में शांति व्यवस्था स्थापित हो सके। क्योंकि भारत के लिए इंडोपेसिफिक के क्षेत्र में श्रीलंका की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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