प्रधानमंत्री का तीन दिवसीय दौरा चर्चा का विषय बना हुआ है।जब रूस यूक्रेन विवाद चरम पर है। दुनिया दो ध्रुव में बटती दिख रही है। चाइना महाशक्ति बनने की कगार पर खड़ा है, और वही यूरोप जो जिओ पॉलिटिक्स की बात नहीं करता था, बैलेंस आफ पावर की बात करता था। आज इंडो पैसिफिक के लिए अलग नीति बना रहा है। यूरोपीय देश यह जरूर जानते हैं कि भारत का रुख रूस यूक्रेन विवाद में अलग है। लेकिन वह भारत की तरफ संबंध बढ़ाना चाहते हैं।
क्यों बर्लिन को जरूरत है नई दिल्ली की
एक तरह से देखा जाए तो यूरोपीय कमीशन का डिफैक्टो अध्यक्ष जर्मनी है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है, पावर हाउस ऑफ द यूरोप है,और इस समय प्रधानमंत्री का बर्लिन जाना और वहां के नए चांसलर ओलाफ से मुलाकात करना। कई नए संकेत देता है। क्योंकि 2021 में ही जर्मनी में नई पार्टी सत्ता में आई है। ओलाफ( एसपीडी) पार्टी से चुने गए थे। जो भारत के प्रति संबंध मधुर करना चाहते हैं। लेकिन जो गठबंधन सरकार है ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेसी उससे भारत के संबंध इतने अच्छे प्रगाढ़ नहीं है। क्योंकि वह पार्टी कई सालो बाद सत्ता में आई है।
265 भारतीय कंपनियां जर्मनी में निवेश की हुई है। वहीं भारत में जर्मनी सातवा सबसे बड़ा निवेशक देश है। जिसका मूल्य 14 अरब डालर है,और इस साल जर्मनी और भारत अपने राजनयिक संबंध के 70 साल पूरे कर चुके हैं। वहीं जर्मनी में 25000 से भी अधिक भारतीय मूल के विद्यार्थी पढ़ते हैं।
ऐसे में बर्लिन भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साझेदार देश होगा क्योंकि बर्लिन के पास ग्रीन एनर्जी, तकनीकी है जिससे हमें बर्लिन से वह प्राप्त हो सकेगी। माइग्रेशन एंड मोबिलिटी एग्रीमेंट में हस्ताक्षर भी किए गए हैं जिससे भारतीय मूल के आईटी पेशेवर लोगों को लाभ मिलेगा।
नई दिल्ली कोपनहेगन
जब रूस यूक्रेन विवाद अपने चरम पर है। डेनमार्क ने 15 रूसी राजनयिकों को अपने देश से बाहर कर दिया है। वह बहुत शांति प्रिय देश है, और युद्ध जैसी समस्याओं से अपने को दूर रखना चाहता। लेकिन डेनमार्क भारत का रूख जानते हुए भी (रूस यूक्रेन विवाद के प्रति) ग्रीन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप जैसे समझौते को लागू किया गया है।
जो कि अपने आप में एक अनोखा है। यह एग्रीमेंट भारत और डेनमार्क के बीच में पहला एक ऐसा एग्रिमेंट है। जिसमें राजनयिक गतिविधियों के बढ़ाने के बात की गई है। पेरिस एग्रीमेंट लागू करने की सहयोग की भी बात की गई है। तथा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल को अचीव करने में मदद की भी बात की गई है। वहीं आर्थिक साझेदारी बढ़ाने के बात की गई है। भारत और डेनमार्क के बीच 145 करोड डालर का व्यापार होता है। जिसमें भारत का व्यापार अधिक है वही सेवा क्षेत्र की बात करें तो 2.4 अरब डालर का व्यापार दोनों देशों के बीच में होता है जिसमें डेनमार्क का प्रतिशत अधिक है।
जिसको लेकर दोनों देशों के व्यापार साझेदारी राजनायिक संबंध, ग्रीन एनर्जी, तकनीकी पर मदद आदि मुद्दों पर बात हुई है। जिससे भारत के लिए असीम संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं।
पेरिस और नई दिल्ली
हाल ही में पेरिस की राजगद्दी में इमानुएल मैक्रो सत्ता पर काबिज हुए हैं। 2017 की बात करें जब मैक्रो सत्ता पर काबिज हुए थे। उस समय भारतीय प्रधानमंत्री सेंट पीटर बर्ग में थे। वहां से उन्होंने बिना बताए सरप्राइज विजिट फ्रांस में की थी। भारत और फ्रांस 75 साल गिरा अपने राजनयिक संबंधों के मना रहा है वहीं अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में फ्रांस का सहयोग, un जैसे मंचों में भारत का लगातार सहयोग किया जा रहा है। ऐसे में यह विजिट भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
वही भारत और नॉर्डिक देशों के बीच भी बैठक हुई है। जोकि 2018 पर संपन्न हुई थी। नॉर्डिक शिखर सम्मेलन की बात करें तो नॉर्डिक देशों की जनसंख्या 2.7 करोड़ है। वही उनकी अर्थव्यवस्था 1 .6 ट्रिलियन डॉलर है। जो कि भारत का 55 फ़ीसदी है। लेकिन जनसंख्या की बात करें भारत की जनसंख्या जितनी दिल्ली एनसीआर की जनसंख्या है उतनी उन देशों की जनसंख्या है। ग्रीन एनर्जी और तकनीकी जैसे मुद्दों पर भारत से सहयोग बढ़ाने की बात की गई है।
भारत की विदेश नीति इस अप्रोच को सार्थक बना रही है। दूसरे देशों का भारत को देखने का नज़रिया बदलता नजर आ रहा है। इसलिए मतभेदों के बावजूद दुनिया के देश भारत के साथ संबंधों को स्वीकार कर रहे हैं।यह भारत की विदेश नीति के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है, एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू बनता नजर आ रहा है।ऐसे समय में जबकि यूक्रेन को लेकर मतभेद बने हुए हैं, प्रधानमंत्री का यूरोप दौरा अपने आप में संकेत है कि भारत अपनी यूक्रेन की नीति को लेकर पूरी तरह से सशक्त है, कहीं पर डिफेंसिव नहीं है और वैश्विक मंच पर अपनी बात स्पष्टता के साथ रखने में सक्षम है। जिस प्रकार से देखा जाए बोरिस जॉनसन का भारत आना और हाल ही में इटली के विदेश मंत्री भारत में है। इस तरह यूरोपीय देशों का भारत की तरफ लगातार रुख अख्तियार करना यह बताता है।की भारत नियम को अडॉप्ट करने वाला देश नहीं नियम बनाने वाले देश की श्रेणी में खड़ा है।
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