मनुष्य का मनुष्यता से मिलन उत्तराखंड में

उत्तराखंड का ट्रिप

प्रकृति की गोद में स्थापित ऋषिकेश जहां सभ्यता और संस्कृति का संगम होता है। जहा उपभोक्ता वादी संस्कृति त्याग कर लोग प्रकृति के सौन्दर्य को गृहण करते है। प्रकृति मनुष्य को अपने मनुष्यता से परिचय कराती है। ऐसी ही मनुष्यता को जानने के लिए हम 26 दोस्त आईआईएमसी की पगडंडी से निकल कर शिवालिक की गोद में आ गए प्रकृति को जानने के लिए।

इस ट्रिप की नीव देवेश जी ने रखी और इसको क्रियान्वित विष्णु भाई ने किया और रूपरेखा रजनीश , ब्रजेश लोगो ने तैयार किया था। सुबह के चार बजकर तीस मिनट में गाड़ी आईआईएमसी के गेट में दस्तक देती है और तीन बजे से लोग गाड़ी का इंतजार कर रहे थे, कुछ लोगो का सब्र का बांध टूटता जा रहा था। तभी बेर सराय की मंडली आती है।और यह हुजूम अपने साथ जोश का भंडार लता है।

गाड़ी में बैठने के बाद लोग काफी खुश दिख रहे थे। कुछ लोग खिड़की वाली सीट चाहते थे। तो वह फौरन अपनी सीट बुक करने लगे। अभी बस बेर सराय ही क्रास की थी कि गाना बजाना का दौर शुरू हो गया। लाजपत नगर की बड़ी बड़ी बिल्डिंगों से आगे बढ़ते हुए। बस अपने गंतव्य स्थान की तरह बढ़ती चली जा रही थी। तभी मेरठ के आगे बस खराब हो गई, सभी को लगा की दो चार मिनट में ठीक हो जाएगी लेकिन समय कुछ और चाहता था। सभी लोग हाईवे के इधर उधर पेड़ की छांव में बैठे हुए थे। तभी वहां गन्ना का जूस का ठेला दिखाई पड़ता है। पश्चिम यूपी का तो गन्ना महशूर ही है। लोग अपने आप को रोक न सके। गन्ने के जूस से अपने आप को तरो ताज़ा करने लगे।दो घंटे के बाद बस ठीक होती है। जल्दी जल्दी लोग अपनी सीट में बैठ जाते है।

इधर बीच जब बस खराब थी तो शुभांशु भाई ने पास ही एक होटल में खाना खा लिया सुबह 9:00 बजे जो खाना खाने के बाद सुधांशु भाई थोड़ा दूर ही बस चली थी कि उनकी पिचकारी की धार के साथ खाना बाहर आने लगा।

हम लोग थोड़ा लेट कैंप में पहुंचे सभी लोग रास्ता लंबा होने की वजह से काफी परेशान हो गए थे।सभी लोग अपना सामान कैंप में रखने के बाद खाने की मेज की टेबल की तरफ पहुंच गए सभी को जोरों से भूख लगी थी और सभी ने हल्का भोजन खाया। थोड़ी ही देर में लोग नदी में स्नान करने के लिए तैयार हो गए। फिर कारवा नदी की तरफ बढ़ता चला गया सभी ने उस ठंडे पानी को अपने आगोश में समा लिया लोग उससे निकलना नही चाहते थे। लेकिन निकलना पड़ा फोटो का दौर भी शुरू हो गया था। फिर शाम को प्रकृति ने हमारा स्वागत किया। और हल्की हल्की बूंदों से प्रकृति ने हमे नहला दिया।

रात में सभी लोग साथ में बैठकर अपने आईआईएमसी के सफर को बताया और अपने किस्से कहानियां सुनाई, जिससे शायद क्लास में कम बात हुई होगी लेकिन वहा पर सब ने दिल जीत लिया देर रात तक सफर यूंही चलाता रहा। फिर सब सोने अपने कैंप में चले गए।

सुबह सुबह प्रकृति को निहारने के लिए मैं सुबह ही जग गया था। साथ में मेरे अजीज आकाश भी सुबह सुबह प्रकृति को निहारने के लिए कैंप में इधर से उधर कर रहे थे। धीरे धीरे लोग सो कर जग रहे थे।वहा पर नीद कब आई यह पता भी नही चला और बिस्तर से उठने का मन भी नही कर था। आज ही हम लोगो को राफ्टिंग करना था।सभी लोग जल्दी जल्दी तैयार हो रहे थे।

हमारी राफ्टिंग का समय सुबह के दस बजे का था, लेकिन गोपालन की गलती के कारण हमे राफ्टिंग में देर थी।तभी सुभांशु फिर पिचकारी की धार से अंदर का खाना बाहर निकाल दिया। हम लोग दो बजे राफ्टिंग शुरू किए लेकिन राफ्टिंग शुरू होने से पहले का मंजर देख कर सभी लोग डर गए। क्योंकि आगे से एक उल्टा राफ्ट आ रही थी। लोग नदी की धारा में बहते चले जा रहे थे। ऐसा देख कर किसी का मन भी डर जायेगा। फिर हमारे गाइड ने उन्हें बचाया। उसके बाद हमने राफ्टिंग शुरू की हमारी टीम का नाम स्पार्टा था। हम लोग लहरों से लड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे। और नदी में कूद का नहा भी रहे थे। फिर कुछ समय बाद हमारी राइड समाप्त हो गई।

सभी लोग राम झूला के पास पहुंच कर ऋषिकेश को निहारने के लिए उतर गए और लोग अपनी अपनी खरीदारी करने लगे। शाम में साढ़े सात बजे बस के पास पहुंचना था। लेकिन लोग लेट आए और नव बजे हमारी रवानगी का सफर सुरु होता है। बीच में हम लोग खाना खाने के लिए उतरे और उसके बाद रास्ते भर गोविंद , देवेश ,प्रभाष ने सभी को जगाए रखा। उसके बाद सुबह सुबह हम आईआईएमसी के गेट पर दस्तक दे दिए।

हमने उत्तराखंड से प्रकृति की सहजता, सहनशीलता और सृजनशीलता को सीखा कुछ नए पुराने रिश्ते इतने मधुर हो गए कि यह अनवरत काल तक चलने वाले है।इधर दिल्ली ने हमारा स्वागत पानी की बूंदों के साथ किया

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