वर्तमान समय में भारत में राष्ट्रवाद अपने क्वथनांक बिंदु में पहुंच चुका हैं। यह बात भारत ही नहीं पूरे विश्व में दिखलाई पड़ती है। जहां एक और प्रशांत महासागर से लेकर अटलांटिक महासागर तक कारा सी से लेकर स्ट्रेट ऑफ हरमुज तक,सब जगह सिर्फ़ राष्ट्रवाद ही अपने उफान में हैं।
ऐसे में इस राष्ट्रवाद जिसे कुछ लोग अंध राष्ट्रवाद भी कहते है। इसके परिणाम भी बहुत घातक होते है। आधुनिक भारत की एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में भारत का विभाजन इतिहास के पन्नों में अंकित हुआ। यह विभाजन भारत में साम्प्रदायिकता भावनाओ की उग्रता का परिचायक ही था । जिसके चलते 1947 में अल्पसंख्यक सांप्रदायिक उन्माद के सामने राष्ट्रवादियों को झुकना पड़ा।
वर्तमान समय की सरकार जो भारत की सत्ता में काबिज़ है। वह अपनी सत्ता को हासिल करने के लिए भारत की आज़ादी के समय राष्ट्रवादियों द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर काम कर रही है। (जिस प्रकार से कर्नाटक के चुनाव में देखने को मिला )
जिसके परिणाम बहुत ही घातक साबित हुए और भारत को विभाजन की त्रासदी झेलनी भी पड़ी जिसके चलते पकिस्तान का निर्माण हो गया।
आज जो भारत में हो रहा है,उसके चलते आने वाले समय में भारत के अंदर कितने भारत बनेंगे इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। वर्तमान समय के इतिहासकार भी भारतीय इतिहास को मलिन करने का प्रयास कर रहे है। सिर्फ एक वर्ग विशेष को तवज्जो देना , कही भारत के लिए समस्या का सबब तो नही बनेगा ?
क्यों कि आज भारत में साम्प्रदायिकता विरोधी ताकतें भी अपना सिर उठा रही है और आय दिन भारत को ऐसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में सांप्रदायिकता के वर्तमान स्वरूप की जड़ें अंग्रेजों के आगमन के साथ ही भारतीय समाज में स्थापित हुई। यह उपनिवेशवाद का प्रभाव तथा इसके खिलाफ उत्पन्न संघर्ष की आवश्यकता का प्रतिफल थीं।
हालाँकि 1857 के विद्रोह के समय भी हिंदू-मुस्लिम एकजुट होकर सामने आए परंतु इसके बाद स्थितियों में परिवर्तन आया तथा अंग्रेज़ों द्वारा ‘फूट डालो राज करो’ की नीति के माध्यम से भारत में अपने हितों की पूर्ति की गई। इसके लिये उनके द्वारा समय-समय पर ‘सांप्रदायिक कार्ड’ का प्रयोग किया गया। जिससे भारत का विभाजन हो सका
वही वर्तमान समय की मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मीडिया द्वारा अक्सर सनसनीखेज आरोप लगाना तथा अफवाहों को समाचार के रूप में प्रसारित करना।
इसका परिणाम कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी धार्मिक समूहों के बीच तनाव और दंगों के रूप में देखने को मिलता है।
वहीं सोशल मीडिया भी देश के किसी भी हिस्से में सांप्रदायिक तनाव या दंगों से संबंधित संदेश को फैलाने का एक सशक्त माध्यम बन गया है।
यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं है यह पूरे विश्व में महामारी के समान बीमारी है। जिसका इलाज़ शायद जल्द न मिले क्यों की यह अभी अपनी बाल्य काल में है। धीरे धीरे इसके परिणाम देखने को पूरे विश्व को मिलेंगे जो हाव्स की राष्ट्र की राष्ट्र की परिकल्पना को ध्वस्त करने का प्रयास करेंगी।
इसलिए विश्व की वर्तमान सरकारों को तुष्टिकरण की नीति से ऊपर उठना पड़ेगा नही तो 1947 जैसी घटना फिर से घट सकती हैं। जिसका दंश आज भी भारत उठा रहा है।
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