2004 में हिंद प्रशांत महासागर में आई सुनामी के कारण जापान ने पहली बार क्वाड के निर्माण के बारे में सोचा था। लेकिन तब यह सही तरीके से क्रियान्वित न हो सका। ऑस्ट्रेलिया इसमें आने से पहले डर रहा था, उसे ड्रैगन का भय सता रहा था।
वही जब अमेरिका में ओबामा सरकार आई तो उसने हिंद प्रशांत महासागर के क्षेत्र में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए ( ट्रांस पैसिफिक पार्टनरसीप) नामक एक संगठन का निर्माण करने का काम किया। जो कि आसियान के क्षेत्र के लिए निर्माण किया जा रहा था। जिससे अमेरिकी सरकार अपना हित साध रही थी।लेकिन वही अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होता है और ट्रंप सरकार आती है। तो उनको यह संगठन बड़ा ही बेतुका लग रहा था। क्योंकि ट्रंप सरकार अमेरिका प्रथम की नीति से सत्ता में आई थी। जिससे चलते ट्रम सरकार ने अपने को किनारा कर लिया। क्योंकि अमेरिका का इन देशों के साथ ट्रेड डेफसिट बहुत अधिक था। जिसके चलते अमेरिकी सरकार इससे बचना चाहती थी। तो ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशीप का बिल ट्रंप सरकार के डस्टबिन में कूड़े के समान था।
वही जापान ने कंप्रिहेंसिव ट्रांस पैसिफिक पार्टनरसीप नामक संगठन बना कर इसे जीवित रखने का प्रयास तो किया। लेकिन वही चीन भी इसकी सदस्यता लेना चाहता है। लेकिन सम्मलित सारे देश चीन को डायजेस्ट शायद नहीं करना चाहता था। लेकिन समय के आधार में धीरे धीरे घटना क्रम बदलता चला जा रहा था। वही ऑस्ट्रेलिया में सत्ता का परिवर्तन हो गया था।चीनी ड्रैगन बढ़ता चला जा रहा था। तथा अमेरिका को अपना अस्तित्व बचाना था। तब जा कर क्वाड 2017 से सही तरीके से जमीन में उतर सका ।
हाल ही में जापान में क्वाड की मीटिंग सम्पन हुई जहा पर सबसे पुराने लोकतंत्र के राष्ट्रपति और सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री और शांति के दूत के नाम से प्रसिद्ध जापान और ऑस्ट्रेलिया के मुखिया हाजिर थे। जहा पर इन देशों ने क्वाड फेलोशिप तथा 50बिलियन डॉलर का इंडो पैसिफिक के क्षेत्र में इन्फ्रा डेवलप करने की बात करते है। तथा और भी योजनाओं को इस क्षेत्र में क्रियान्वित करने की घोषणा की गई है।
वही चीनी सरकार के द्वारा इसके ऊपर आरोप लगाया जाता है, कि क्वाड का न कोई मुख्यालय है , न कोई चार्टर है। इसके कोई सिद्धांत नही है। तो इसका निर्माण ही क्यों किया गया क्या यह भविष्य में एशियन नाटो के रूप में निर्माण हो जायेगा।
जापान में मीटिंग समाप्त होने के बाद आसियान देशों को साथ लाने के लिए इंडो पैसिफिक फ्रेमवर्क नामक एक संगठन का निर्माण किया गया। जिसमे आसियान के दस देशों में से सात देशों ने शिरकत की वही (म्यांमार, लाओस, कंबोडिया) ने शिरकत नही किया कही न कही उसे चीन का भय सता रहा है। वही इसमें साउथ कोरिया और न्यूजीलैंड जैसे देश भी सम्मिलित है। जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ता चला जा रहा है।कल एशियन कॉन्फ्रेंस के मीटिंग में भी म्यांमार का रूख सही नही दिखलाई पड़ा।
वही विश्व के अन्य देश इंडो पैसिफिक के लिए अलग अलग नीति ला रहे है। जहा यूरोपियन कमीशन तथा ब्रिटेन भी इंडो पैसिफिक की अलग नीति ला रहे है। इससे भारत का कद वैश्विक बिरादरी में बढ़ता चला जा रहा है। भारत की जियो पॉलिटिकल स्थिति बहुत शानदार है। क्योंकि पूर्व में अफ्रीका तो पश्चिम में आसियान का विशाल द्वार है। वही चीन को साधने के लिए भारत की अधिक जरूरत है ,वैश्विक बिरादरी को इस लिए सभी लोग आशा के रूप में भारत की तरफ निहार रहे है।
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